क्या पत्रकारिता विलासिता की सामग्री है ?’’ -राजकमल पांडे
अनूपपुर /प्रदीप मिश्रा -8770089979/
अगर सामाजिक, राजनैतिक, भ्रष्टाचार और उससे व्याप्त कुंठा से
जन-जीवन का मोह भंग करने के लिए पत्रकारिता नही कर पा रहे हैं, तो ऐसे
पत्रकारों को सब्जी मंडी में सब्जी का दुकान खोल लेना चाहिए। सब्जी बेंचना
ग़लत नही है, बेंचने वाले बेंचते हैं। बशर्ते आलू, टमाटर के भाव वाली अगर
पत्रकारिता करना चाह रहे हो, तो लम्बे समय तक ऐसे पिलपिला पत्रकारिता न चल
सकेगा। और ना ही क़लम में सब्जी के सडांध आने देंगे। क्योंकि मानवीय मूल्यों
की रक्षा हेतु अपने आपको समर्पित कर देना ही पत्रकारिता है, जन-जीवन के
दुःख, दर्द को उज़ागर करना ही पत्रकारिता है। और कोशिश कीजिये कि ऐसी
पत्रकारिता की जा सके। हम उन पत्रकारों से कहना चाहते हैं, जो पत्रकारिता
में सीखते रहने व ख़बरों में एड़ियां रगड़ना आज भी जानते हैं। और कुछ लोग ऐसे
भी जिन्हें न सीखने का जो ये नकारापन हैं न, यही से विलासिता को जन्म दे
देते हैं। जबकि पत्रकारिता न भोग है और ना ही विलास पत्रकारिता संघर्ष,
चुनौती और ख़बरों से जूझने का डगर है। यहां वही लोग पत्रकारिता के सफ़र में
जाएं, जो जूझते हुए अपनी हड्डियां गला देने की ज़हमत रखते हों।
कविराज ! चाहते हैं कि अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव शान्ति ढंग से
हो जाये, और इसी उद्देश्य के पूर्ति हेतु पाईजी ! भी हाल ही के विधानसभा
चुनाव का बैनर, पोस्टर उतार कर उपचुनाव का बैनर, पोस्टर टंगाने के लिए कमर
कस रहे हैं। पाईजी, किसी दल के नही और न उनका स्वयं का कोई दल है ! या यूँ
कह लीजिये कि पाईजी, दल बदलू हैं। पर ऐसा नही है, पाईजी अपने परिवार का पेट
पालने के लिए कभी-कभी अधिकारी व नेताओं के घर सब्जी भी डिलेवर कर आते हैं,
दो-चार पैसे ग़रीब को मिल जाते हैं; तो पाईजी का परिवार पलता है। न तो
पाईजी किसी का बाड़ी कूदते हैं, और ना ही किसी औरत का साड़ी या दुप्पटा
खींचते हैं, न राहगीर को लूटते हैं, न किसी नेता को धमकाते हैं, न किसी
अधिकारी के जेब मे हाथ डालते हैं, और ना ही वो गरमगोश्त के शौकीन हैं।
ईमानदारी से पार्टियों का झंडा, बैनर-पोस्टर, कटआउट बांधते-लटकाते हुए चार
पैसा कमाकर अपना गुज़र बसर करते हैं।
आज पाईजी ! बहुत नाराज़ थे एक हाथ मे सुबह की अख़बारों का पुलिन्दा था, तो
दूसरी हाथ मे बीड़ी का बंडल था। और रेलवे चौके के एक कोने में खड़े-खड़े बीड़ी
पी रहे थे, तभी कविराज ! का वहां से गुज़रना हुआ और देखा कि पाईजी, का एक
बीड़ी ख़त्म न हो, दूसरा जला लेते थे ! कविराज ! यह देखकर चिंतित हुए और
आनन-फानन पाईजी, की ओर बढ़े ! पाईजी पुनः एक बीड़ी जलाने ही वाले थे कि
कविराज ! ने उनका हाथ पकड़ लिया, और कहा क्यूँ भई, पाईजी ! क्या बात है
बेहद् चिंतित मालूम पड़ते हो, कुछ हुआ है क्या ? पाईजी, बीड़ी एक हाथ से
सरकाते हुए कहने लगे ये बताओ कविराज ! ‘‘क्या पत्रकारिता विलासिता की
सामग्री है ?’’ कविराज ! ने पाईजी, के तमतमाहट भरे स्वर को पहले शांत किया,
उनके हाथ से बीड़ी का बंडल लेकर फेंका ! और कहा चलो रास्ते मे बात करते
हैं। कविराज ! ने पाईजी, से कहा तुम सुबह के अखबारों पर विकास पुरुष के
लेफ्ट हेड व अंग प्रत्यंग के आये स्टेटमेंट से चिंतित हो, तो सुनो पाईजी !
जिन नेताओं ने उक्त नेताओं की अश्लीलता को ढ़कने के लिए, अपना पगड़ी उतार कर
दे दिया है, और स्वयं बिना पगड़ी के हो गए हैं। वह अश्लीलता लबालब नेता जी
कितना पाक और साफ़ हैं, उन स्टेटमेंट देने वाले नेताओं को स्वयं मालूम है।
पाईजी, थोड़ा शांत हुए और कविराज ! से एक सवाल किया कहा कविराज
! आपको यह नही लगता कि जिलाध्यक्ष, पूर्व जिलाध्यक्ष, पूर्व नगरपालिका
अध्यक्ष आदि जिसके बचाओ में आज स्टेटमेंट दे रहे हैं, वह स्वयं अपनी
बची-कुची छवि धूमिल कर रहे हैं। जबकि उक्त नेता की छवि से पार्टी के
वरिष्ठतम पदाधिकारी भी वाक़िफ़ है, जनता भी वाक़िफ़ है और उनसे कुछ शोषित लोग
भी वाक़िफ़ हैं। ऐसे में पार्टी से चौगिर्दा घिरे चार नेताओं का निराधार
स्टेटमेंट हमारे लिए क्या हास्या का विषय नही है। कविराज ! ने कहा अच्छा ये
बताओ पाईजी, जब उक्त मामले में नेता पर सोशल मीडिया में अश्लीलता फैलाने
का आरोप लगा था, तब ये चार महोदय अफ़ीम खा कर सो रहे थे। अब चूंकि मामला
क़ायम हो चुका है, इज्जत सड़क में आज चुका है, उक्त नेता की असलियत की जांच
होनी है, बहुत नपने वाले हैं, कितनो के चेहरों से नक़ाब उतरने वाले हैं। तब
ऐसा बेबुनियाद स्टेटमेंट आना कि उनका मोबाईल फ़ला-फ़ला तारीख़ को ग़ुम हो चुका
था, उक्त नेता की छवि साफ़ व स्वच्छ है, वह ऐसा नही कर सकते हैं, उनको
फंसाया जा रहा है, हम इसकी कड़ी निन्दा करते हैं, इसकी जांच होनी चाहिए। तो
यह तुम्हारे या मेरे लिए हास्या का ही तो विषय है। उन जयचंदों को इतना तो
ज्ञात तो होगा ही कि यह लोकतंत्र है, और लोकतंत्र में कानून, व्यवस्था को
मानने, जानने व स्वीकारने वालों को इतना सहूर स्टेटमेंट देने के पूर्व होना
चाहिए कि न्यायालय सबको अपनी बात रखने का मौका देता है, बावजूद इसके
फड़फड़ाहट किस बात का है। और उक्त नेता का मोबाईल ग़ुम हो जाने का दावा करने
वाले नेता जी, तब कहां थे जब सोशल मीडिया में अश्लीलता फैलाने का आरोप लगा
था। सुनो पाईजी, पार्टी में मिस्टर लल्लूराम का कोई अस्तित्व बचा नही है,
बशर्ते वह अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु हाथ-पैर मार रहे हैं, ताकि वह पार्टी
में स्वयम्भू वाली अपनी भूमिका दर्शा सकें। मिस्टर लल्लूराम- पहले तो अपने
घर में चार-पांच पत्रकारों को बुलाकर शिलान्यास वाली ख़बर का खंडन करवाने
का प्रयास करवाया, जब इससे भी बात न बना, तो वह अपने पालित झंडाबरदार को
पीछे लगवाया, उससे भी बात न बना, तो अभी हाल ही के ख़बरों पर पार्टी का
आधिकारिक स्टेटमेंट आया। इससे यह जान पड़ता है कि भारतीय जनता पार्टी ऐसे
लोगों का संरक्षण देने व खुलकर बचाओ पक्ष में आने से बिल्कुल परहेज़ नही
करते हैं। ऐसे नेताओं की मूर्खतापूर्ण हरक़त पर तरस आता है कि भई ! विधानसभा
उपचुनाव में प्रचार प्रसार हेतु ऐसे कौन से खेत का फ़सल चर आये हो कि हज़म
नही कर पा रहे हो। और पाईजी ! पत्रकार अपना काम कर रहें, जो पत्रकारिता का
धर्म है। किसी भी मामले में एक पक्षा हो जाना न्याय संगत पत्रकारिता नही
है, बल्कि तुम्हें सोचना चाहिए कि संभाग का एक प्राचीन अख़बार जिन्होंने
संभाग में क़लम से कटार तक में लोगों को तब्दील होते देखा है। और पार्टी के
आधिकारिक स्टेटमेंट को बढ़ा-चढ़ा कर छापना और उक्त नेता का महिमा मंडन किया,
तो ऐसे अखबार के मालिक से हमें व और लोगों को पत्रकारिता सीखनी चाहिए।
उनका पूजा अर्चना करना चाहिए, माल्यार्पण सहित पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
ऐसे अख़बार के मालिकों की रिक्तता की भरपाई संभव नही है, समस्त ग्रह और
उपग्रह इनका स्वागत करने हेतु उतावले हैं।
बशर्ते पाईजी ! एक ओर यह भी लगता है कि जब शव अर्थी में चढ़ाया जाता है,
तो बॉडी हल्का वाइब्रेट तो करता ही है। और इन नेताओं के आये स्टेटमेंट से
यह मालूम होता है कि अब इनकी राजनीतिक बॉडी अर्थी में लेटने के लिए नहा
धोकर तैयार है। और पाईजी, बात काटते हुए बोले कविराज ! नेताओं के आये
बेबुनियाद स्टेटमेंट का अन्त कहां और कैसे होगा। कविराज ! ने कहा पाईजी !
इन नेताओं के स्टेटमेंट का अन्त अब सीबीआई जांच के बाद ही दम लेगा।
कविराज और पाईजी ! भी चाहते हैं कि उक्त मामले पर सूक्ष्मता से
जांच हो कि मोबाइल ग़ुम जाने की सूचना नेता जी को कब हुई, मोबाइल ग़ुम जाने
बाद कितने कॉल आये, कितने कॉल रिसीव हुए, कितने नम्बर उस मोबाइल से डायल
हुए, किन नम्बरों में डायल किये गए, मोबाइल कब बन्द हुआ, कहां बन्द हुआ और
किस लोकेशन में बन्द हुआ। इसकी जांच होनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का
पानी हो सके, और सीबीआई जांच के लिए अगर पार्टी के नेता तैयार न हों तो
कविराज और पाईजी ! मिलकर केन्द्र सरकार को उक्त मामले पर पत्र लिखकर सीबीआई
जांच की मांग करते सकते हैं। किसी नेता के राजनीतिक कैरियर का सवाल है,
उनके बचाव पक्ष में खड़े नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है, इसकी
सीबीआई जांच जरूरी है।
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